✍️ योगेश राणा
. :- छठ का अद्भुत नज़ारा! घाटों पर उमड़ा जनसैलाब!
न्यूज़ डायरी, नोएडा।
छठ महापर्व सनातन धर्म में आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्रकृति, सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का पावन अवसर भी है। यह पर्व चार दिनों तक अत्यंत शुद्धता और सादगी के साथ मनाया जाता है। वर्ष 2025 में छठ पूजा 25 अक्टूबर से प्रारंभ होकर 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हुआ।
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाने वाला व्रत
हिंदू पंचांग के अनुसार छठ पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से प्रारंभ होकर सप्तमी तिथि तक चलता है। इसे विशेष रूप से उत्तर भारत, विशेषकर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्र में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह व्रत कठोर अनुशासन, पवित्रता, संयम और मन की दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है।
चार दिनों की पूजा विधि
- नहाय-खाय (पहला दिन)
पहले दिन व्रती पवित्र नदी या जलस्रोत में स्नान कर घर को शुद्ध करती हैं। इस दिन सात्विक भोजन किया जाता है, जिसका उद्देश्य शरीर और मन की पवित्रता बनाए रखना होता है।
- खरना (दूसरा दिन)
दूसरे दिन ‘खरना’ का आयोजन होता है। इस दिन शाम के समय व्रती खीर, रोटी और गुड़ से बने प्रसाद को ग्रहण करती हैं। इसके बाद व्रती 36 घंटे का कठोर निर्जला उपवास आरंभ करती हैं, जिसमें जल का भी सेवन नहीं किया जाता।
- संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
तीसरे दिन व्रती परिवार सहित नदी घाट, सरोवर या तालाब के किनारे पहुंचकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करती हैं और लोकगीतों के बीच छठ मैया से परिवार के सुख, शांति और समृद्धि की कामना करती हैं।
- उषा अर्घ्य (चौथा दिन)
चौथे दिन प्रातःकाल व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करती हैं। यही इस पर्व का सबसे पवित्र क्षण माना जाता है।
उषा अर्घ्य की विधि और महत्व
छठ का चौथा दिन ‘उषा अर्घ्य’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रती उगते सूर्य की प्रथम किरणों के साथ कमर-तक जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करती हैं।
पूजा सामग्री में शामिल होता है:
दूध, गंगाजल, हल्दी, सिंदूर
अक्षत, सुपारी, पुष्प
दीपक, अगरबत्ती और गन्ने सहित विभिन्न फल
व्रती बिना सिले हुए वस्त्र पहनते हैं। अर्घ्य देने के बाद छठी मैया की आराधना की जाती है और परिवार के स्वास्थ्य, खुशहाली और उन्नति की कामना की जाती है। पूजा पूर्ण होने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत का समापन किया जाता है।