नई दिल्ली।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण से कहा है कि शहर में दो प्रायोगिक स्मॉग टॉवर वायु प्रदूषण को कम करने में प्रभावी नहीं रहे हैं और इन महंगे विशाल वायु शोधक के संचालन से कोई लाभ नहीं है। डीपीसीसी ने बीते सप्ताह एनजीटी को सौंपी एक रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया कि स्मॉग टावर वायु प्रदूषण की समस्या का ‘व्यावहारिक समाधान’ नहीं हो सकते हैं और दिल्ली में ऐसी दो संरचनाओं का ‘एक संग्रहालय के रूप में, वायु प्रदूषण नियंत्रण पर तकनीकी जानकारी के प्रचार’ के लिए पुन: उपयोग किया जाना चाहिए।
डीपीसीसी की वरिष्ठ वैज्ञानिक नंदिता मोइत्रा ने रिपोर्ट में कहा कि कनॉट प्लेस में 25 करोड़ रुपये की लागत से बना स्मॉग टॉवर दो वर्ष से चल रहा है। यह केवल 100 मीटर के दायरे में 17 प्रतिशत वायु प्रदूषण को कम कर सकता है. प्रदूषण नियंत्रण निकाय ने दिल्ली के 1,483 वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए कहा कि शहर को 47,000 से अधिक ऐसे टावरों की आवश्यकता होगी जिनमें से प्रत्येक को लगाने का खर्च 25 करोड़ रुपये होगा और इसके संचालन एवं रखरखाव पर हर महीने 15 लाख रुपये खर्च होंगे।
डीपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया कि 25 करोड़ रुपये की पूंजीगत लागत और 10-15 लाख रुपये प्रति माह के खर्च पर 100 मीटर के दायरे में प्रदूषण में केवल 17 प्रतिशत की कमी ‘बिल्कुल पर्याप्त नहीं है। यह समुद्र में एक बूंद भी नहीं है।’
इसमें कहा गया कि दोनों टावर प्रायोगिक थे और इनके परिणाम भारी खर्च के अनुकूल नहीं हैं। केंद्र सरकार के सूत्रों ने पिछले सप्ताह कहा था कि स्मॉग टावर दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की समस्या के समाधान नहीं हैं और सरकार इन्हें स्थापित करने के पक्ष में नहीं है। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद दोनों स्मॉग टावर वर्ष 2021 में लगाए गए। एक टावर डीपीसीसी के तहत कनॉट प्लेस में जबकि दूसरा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के तहत आनंद विहार में स्थापित किया गया था।