दिल्ली हाईकोर्ट से मिली राहत
नई दिल्ली:- दिल्ली के एक व्यक्ति पर मात्र दो हज़ार रुपए की रिश्वत लेने के आरोप का दाग आखिरकर धुल गया। लेकिन आरोप और वेदना का यह सफर इतना आसान नहीं था,न्याय के इस छोर तक पहुंचने में उसे पूरे 31 साल का समय लग गया। अब दिल्ली हाईकोर्ट से उसे आरोपमुक्त करते हुए बड़ी कर दिया गया।
दरअसल दिल्ली राज्य उद्योग विकास निगम के तत्कालीन सहायक प्रबंधक आर. तिवारी पर 31 साल पहले दो हजार रुपए की रिश्वत लेने का आरोप लगा था। जिसके अनुसार शिकायतकर्ता सतीश कुमार को खिचड़ीपुर में डीएसआइडीसी ने आठ जून, 1993 को वर्किंग शेड का आवंटन हुआ था। उनका आरोप था कि आर. तिवारी ने शेड का कब्जा देने के लिए दो हजार रुपए की रिश्वत मांगी थी। उन्होंने यह राशि उनके सहयोगी आरके पांडे को देने के लिए कहा था। इसे लेकर सतीश ने 10 जून, 1993 को सीबीआइ में शिकायत की। सीबीआइ ने सतीश के जरिए रिश्वत के मामले में आर. तिवारी को गिरफ्तार किया था। इस मामले में 2001 में तीस हजारी की विशेष कोर्ट ने तिवारी को दो साल की सजा सुनाते हुए पांच हजार रुपए का जुर्माना लगाया था। अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए इस मामले को लेकर तिवारी ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जस्टिस अनु मल्होत्रा की पीठ ने 19 मई, 2001 को तीस हजारी की विशेष कोर्ट द्वारा सुनाए गए निर्णय को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को बरी करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता से रिश्वत की कोई राशि बरामद नहीं हुई थी। शिकायतकर्ता की कमीज से केमिकल पाउडर लगे नोटों को जब्त नहीं किया गया था। मामले में सह आरोपित आरके पांडेय (मृतक) ने भी कहा था कि उन्होंने शिकायतकर्ता से कोई रिश्वत नहीं मांगी। तथ्यों और पेश किए गए सबूतों को देखते हुए अपीलकर्ता आर. तिवारी के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 और षड्यंत्र रचने का मामला नहीं बनता है।