“बैंक बचाओ, देश बचाओ” का दिया नारा
नोएडा :- नोएडा मीडिया क्लब में ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन ने राष्ट्रीय बैंकों के निजीकरण के खिलाफ एक प्रेस वार्ता को संबोधित किया साथ ही उन्होंने बैंक बचाओ देश बचाओ का नारा दीया। आगे उन्होंने बताया वर्तमान केंद्रीय सरकार बैंकों के निजीकरण की दिशा में अनेक कदम उठा रही है। केंद्रीय वित्तमंत्री द्वारा 2021 के बजट भाषण में बैंकों के निजीकरण का घोषणा पहले ही किया जा चुका है । निजीकरण की मंशा को जमीनी रूप देने के लिए अब सरकार शीतकालीन सत्र में बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिकरण और हस्तांतरण) अधिनियम 1970 और 1980 तथा बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949, में भी संशोधन पेश करने का फैसला किया है।
राष्ट्रीय बैंक के निजीकरण के दुष्प्रभाव
राष्ट्रीय बैंकों का निजीकरण होने से भारतीय अर्थव्यवस्था और आम नागरिकों के रोजमर्रा के जीवन पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ेगा। केंद्रीय सरकार क्यों बैंकों का निजीकरण चाहता है इसका कोई भी कारण देश के जनता को नही बता पा रही है। इसीलिए देश में बैंक अधिकारियों का शीर्ष संगठन ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (एआईबीओसी) इस बैंक निजीकरण के निर्णय का पुरजोर तरीके से विरोध करता है और इसके खिलाफ जनमत जुटाने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से “भारत यात्रा” आयोजित कर रहा है।
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर एसोसिएशन ने संगठन कब और कहां से शुरू की “भारत यात्रा”
यह “भारत यात्रा” 24 नवंबर 2021 को कलकत्ता और मुम्बई दिल्ली के लिए चल पड़ा है। 30 नवंबर 2021 को नई दिल्ली के जंतर मंतर में ‘बैंक बचाओ, देश बचाओ’ रैली का आयोजन किया गया है। किसान संगठनों, ट्रेड यूनियनों, राजनीतिक दलों और जन संगठनों के नेताओं को भी “बैंक बचाओ, देश बचाओ” रैली में आमंत्रित किया गया है। इस रैली से बैंकिंग कानूनों में संशोधन लाने के खिलाफ एकजुठ होकर जबरदस्त विरोध किया जायेगा।
आइए जाने आखिर क्यों हो रहा है राष्ट्रीय बैंकों के निजीकरण का विरोध ?
1. साधारण ग्राहकों के बैंकों में जमाराशि की सुरक्षा घटेगी।
भारत में ग्राहकों के व्यक्तिगत खाताओ में कुल जमाराशि का 70 प्रतिशत राष्ट्रीय बैंकों में जमा है जिसका मान लगभग 60 लाख करोड़ है।नागरिकों का यह भरोसा राष्ट्रीय बैंकों के पीछे सरकारी गारंटी की वजह से आता है और बैंक निजीकरण कि प्रक्रिया इस गारंटी को समाप्त करेगी जिससे बैंक में जमा राशि की सुरक्षा कम हो जाएगी।
1. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को बैंकिंग सेवाओं से वंचित होना पड़ेगा
सरकारी मापदण्ड के अनुरूप कुल बैंक ऋण का 40 प्रतिशत छोटे और सीमान्त किसान, सूक्ष्म और लघु उद्योग, स्वनिर्भर गोष्टी (SHG) अनुसूचित जाति एवं जनजाति और अल्पसंख्यक जैसे कमजोर वर्गों को जाना चाहिये। निजी क्षेत्र के बैंक इन तबको को ऋण देने से सर्वदा ही कतराते हैं। उपरोक्त वर्गो का सहारा राष्ट्रीय बैंक ही है। बैंकों के निजीकरण से गरीब एवम ग्रामीण नागरिक बैंकिंग प्रणाली से नहीं जुड़ पाएंगे। अब तक खोले गए 44 करोड़ पीएम जन-धन योजना खातों में से 97% राष्ट्रीय बैंकों ने खोला है।
3. निजीकरण से ऋण दोषियों एवं धोखेबाजों को बढ़ावा मिलेगा
निजी क्षेत्र के कई बैंक एवं वितीय संस्थान हाल ही में दिवालिया हुए हैं जैसे यस बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक और ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, ILFS और DHFL इत्यादि। इसके विपरीत आज तक एक भी सरकारी बैंक विफल नहीं हुआ है। प्राइवेट बैंकों की विफलता देश में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मुख्य कारणों में से एक थी। बैंकों का निजीकरण एक बार पुनः देश को आर्थिक रूप से पीछे धकेल देगा। पिछले दशक में राष्ट्रीय बैंकों के मुनाफे में गिरावट मुख्यतः बड़े उद्योगपतियों जैसे विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, जतिन मेहता आदि के धोखाधड़ी से पैसा गबन करने से हुआ है। सरकारी बैंकों का निजीकरण NPA कि समस्या को दूर करने की बजाय बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी और ऋण दोषियों को बढ़ावा देगा।
4. कम होंगे रोजगार के अवसर, बढ़ेगी बेरोजगारी
सरकारी बैंक लगभग साढ़े सात लाख से ज्यादा लोगों को नौकरी प्रदान करता है। निजीकरण से रोजगार के अवसर कम होंगे और बेरोजगारी बढ़ेगी। साथ ही साथ रोजगार के जो अवसर SC, ST, OBC वर्ग को मिलता है उसमें अत्यधिक कमी आयेगी क्योंकि निजी क्षेत्र कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण नीतियों का पालन नहीं करते है।
सौम्य दत्त ने सभी भारतीय नागरिकों से की अपील
आगे प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए सभी भारतीयों से अपील की कि सरकारी बैंकों और अन्य सार्वजनिक संपत्तियों के निजीकरण के खिलाफ सभी को एकजुट होना चाहिए साथ ही उन्होंने कहा “सरकारी संपत्ति की रक्षा में ही असली देश की भक्ति है”
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन ने सभी भारतीय नागरिकों से “बैंक बचाओ देश बचाओ” अभियान में बढ़ चढ़कर भाग लेने व 30 नवंबर 2021 को नई दिल्ली के जंतर मंतर में होने वाली रैली मैं आने और एकजुट होने को कहा