भगवान को धन्यवाद के लिए होता है जंगल में होता है दूध दही घी मक्खन का भण्डारा

उत्तरकाशी।

 देव भूमि उत्तराखंड को यूं ही देव भूमि नहीं कहा जाता है ,यहां की संस्कृति एवं परंपरा आज भी एहसास कराती है कि यहां के हर पत्थर में भगवान मौजूद हैं । आज हम बात कर रहे हैं उत्तर की द्वारिका यानी गाजणा एवं रमोली क्षेत्र के सिरी गांव की जहां भगवान जगन्नाथ की अनोखे रूप में पूजा की जाती है। पूजा की तिथि निर्धारित होने पर पूरे क्षेत्र के पशुपालक दो दिनों का दूध दही मक्खन घी को इकट्ठा करते हैं और 4 किलोमीटर खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद होड़ नामक जगह में  भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना करते हैं। यहां दूध दही घी मक्खन का भंण्डारा करते हैं । इन दो दिनों में गांव के लोग एक बूंद दूध भी अपने घरों में नहीं रखते हैं । सबसे पहले भगवान का दूध से स्नान करवाया जाता है । उसके बाद आटे का हलवा एवं दूध से खीर बनाकर इसका भंण्डारा किया जाता है । इसके पीछे ग्रामीण कारण बताते हैं कि द्वापर युग में भगवान कृष्ण इस क्षेत्र में सेम नागराजा के रूप में विराजमान हुए हैं, तब से वह इस क्षेत्र के आराध्य देव हैं और उन्हीं का धन्यवाद करने के लिए यह भंण्डारा किया जाता है। 

अगर नियत तिथि के दिन इस परंपरा को निभाने में देर हो जाती है , तो यहां पर भगवान बाघ के रूप में प्रकट होकर उनके पशुओं को नुक़सान पहुंचाते है। साथ ही इस दिन के बाद इन जंगलों में रह रहे पशुपालक अगले 6 माह के लिए अपने गांव लौट जाते हैं ।