Historical context of business : भारतीय ग्रामीण उत्पादों के व्यापार के ऐतिहासिक संदर्भ : चिरंजी लाल कटारिया


नई दिल्ली :- लाखा बंजारा और उसका नौ लखा हार और बैल गाड़ियों में लदे हीरे जवाहरात की रोमांचकारी कहानियाँ किसने नहीं सुनी । बुंदेलखंड से लेकर जैसलमेर तक लाखा बंजारा की दान वीरता और राष्ट्र भक्ति के अनगिनत क़िस्से गाँव गाँव प्रचलित है ।
कहा जाता है कि लाखा बंजारा के पास हज़ारों की संख्या में बैल गाड़ियाँ थी । कुछ बैलगाड़ी उसके लस्कर के आगे आगे चलती थी जो उपहारों से भरी होती थी । ये ही उपहार तत्कालीन राजा महाराजाओ को पेश किये जाते थे ताकि आम जनता में उन उत्पादों को लेकर उत्सुकता पैदा हो । ठीक इसके बाद लाखा बंजारा का मूल लाव लस्कर होता था । आज की भाषा में इसको मज़बूत सप्लाई चैन कह सकते है । मिश्री , मुवक्का , सौंठ , केसर ,लौंग और रेशमी कपड़ों का मूल व्यापारी के रूप में लाखा बंजारा ने पूरे विश्व में अपना नाम कमाया । कहाँ तो यह भी जाता है कि दिल्ली के चार गाँव नरेला , बारहखभा , मालचा और रायसिना लाखा बंजारा ने ही बसाये थे । शास्त्रिय संगीत के कलाकारों को आर्थिक मदद देने से लेकर जनहित मे हज़ारों कुएँ और बावड़ी भी लाखा
बंजारा ने खुदवाए ।

नौ लखा हार को लेकर नील दमयंती के क़िस्से आज भी जन मानस में है । हो सकता है फेसबुकिया और वाटसअप की दुनिया तक सिमट जाने वाली यह नई पीढ़ी नौ लखा हार रेशमी कपड़ों की महता को ना समझ पाये । तिब्बत जाने वाले सिल्क रूट की तमाम परेशानियों से यह पीढ़ी ना वाक़िफ़ हो । लेकिन यह सच है कि ग्रामीण उत्पादों के प्रचार प्रसार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है ।
यधपि वैदिक समय में ग्रामीण उत्पादों के व्यापार को लेकर अच्छा ख़ासा उल्लेख मिलता है । ऋग्वेद काल में व्यापार करने वाले लोगों को “पणि “ कहा जाता था । व्यापार थल व जलमार्ग से होता था । एक स्थान पर ट्रुग के पुत्र भुज्य की समुद्री यात्रा का ज़िक्र है जिसने मार्ग में जलयान नष्ट हो जाने पर आत्म रक्षा के लिए अश्विनी कुमारों से प्रार्थना की थी ।
इसी प्रकार कई काल खंडों में विभिन्न ऐतिहासिक संदर्भो में ग्रामीण उत्पादों के व्यापार की जानकारी मिलती है । बुद्ध क़ालीन समय में पाटलिपुत्र ग्रामीण उत्पादों का एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र हुआ करता था । बुद्ध क़ालीन धर्म ग्रंथों में विशेष कर त्रिपिटको में इसका विस्तार से वर्णनन हैं यधपि आध्यात्मिक माहौल के बावजूद वणिक ग्रामीण उत्पादों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक बैल गाड़ियों से पहुँचाते थे । ये यात्राएँ अफ़ग़ानिस्तान के कंधार से लेकर बंगाल , गुजरात ,चेरलम ( केरल का प्राचीन नाम ) जैसलमेर होते हुए तक्षशिला से निकल कर इरान तक जाती थी ।
चेरलम ( केरल ) के मसालों का ज़िक्र पख़्तून लोक गीतों में होता था । ईरान की लोक कथाओं पर आधारित पुस्तक दरब – नाम जो अबू ताहेर तरसुसी द्वारा लिखित है उस पुस्तक में हिंदुस्तान की हस्त कला का ज़िक्र है तथा पणियों के व्यापार कौशल की तारीफ़ की गई है । जानकारों का यहाँ तक मानना है कि कज़ाखस्तान, उज़बेकिस्तान में भारतीय मसालों की धूम मचती थी । तिब्बत के सिल्क रूट से कौन परिचित नहीं है । यह सिल्क रूट दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 15 वी शताब्दी तक चालू था जिसका फैलाव 4000 मील तक था । यधपि मुग़लों के हमलो से इसमें व्यवधान पड़ा । व्यापारियों पर आये दिन हमले और लूट की घटनाओं ने व्यापारियों की कमर तोड़ दी । कहा जाता है कि जैसलमेर के भाटी राजपूतो ने व्यापारियों की सुरक्षा के लिए बाक़ायदा एक सैन्य टुकड़ी का गठन किया था जो उनके लाव लश्कर के साथ चलती थी ।
लेकिन लखी शाह बंजारा की दूरगामी सोच और व्यापार कौशल ने भारतीय ग्रामीण उत्पादों के बाज़ार को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया ।
लूट खसोट से बचने के लिये कहा जाता है कि लखी बंजारा ने व्यापार के विभिन्न मार्गों पर क़रीब एक लाख सैनिकों की विभिन्न टुकड़ियाँ नियुक्त की तथा ग्रामीण उत्पादों के व्यापार को पटरी पर लाया गया ।
मशहूर शायर नज़ीर अकबराबादी ने 1760 के आस पास एक नज़्म लिखी


“ ग़र तू लखी बंजारा और खैप भी तेरी भारी है
ऐ ग़ाफ़िल तुझसे भी चढ़ता एक व्यापारी है
क्या शक्कर मिश्री , कदँ गरी क्या सांभर मीठा खारी है
क्या दाख मुन्नकॉ सौठ मिरच क्या केसर लौंग सुपारी है
सब ठाठ पड़ा रह जायेगा जब लाद चलेगा बंजारा “


भारतीय मसालों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है जो लखी शाह बंजारा विभिन्न मुल्कों के बाज़ारों तक पहुँचाता था ।

लाल मिर्च और टमाटर पुर्तगाली भारत आये

लाल मिर्च हिंदुस्तानी उत्पाद नहीं है । पुर्तगालियों ने भारतीयों को लाल मिर्च से परिचय कराया । लाल मिर्च का इतिहास मैक्सिको से जुड़ा है । भारत में काली मिर्च का इस्तेमाल होता था । टमाटर भी पुर्तगाली ही भारत लेकर आये । भारतीय गृहणियाँ सब्ज़ी में खट्टे की जगह दही इस्तेमाल करती थी । लेकिन प्राचीन समय से ही भारतीय काली मिर्च के प्रति पूरी दुनिया की निगाहें रही है । वास्को डि गामा भारत की काली मिर्चों और अन्य मसालों को लेकर वापस पुर्तगाल चला गया । जब उत्पादों की मात्रा बढ़ी और अन्य स्थानों पर उत्पादों को पहुँचाने में दिक़्क़तें आने लगीं तो स्थानीय बाज़ार मंडी में मेलों के माध्यम से भी खपाया जाने लगा । बिहार के सोनपुर मेले शुरूआत वैदिक काल से मानी जाती है । यधपि यह पशुओं का मेला था जिसमें कर्नाटक ,तमिलनाडु व पंजाब के व्यापारी तक भाग लेते थे । भारत में क़रीब 250 प्रसिद्ध मेले लगते रहे हैं जिनमें मुख्य रूप से ग्रामीण उत्पादों की बिक्री होती रही है । इसलिए भारत में ग्रामीण उत्पादों के व्यापार का एक लंबा इतिहास रहा है और आज के परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय व राष्ट्रीय ग्रामीण विकास व पंचायती राज संस्थान द्वारा आयोजित सरस मेला ग्रामीण उत्पादों के व्यापार की तमाम विधाओं को समेटे हुए है । जहां लगभग पूरे भारत के ग्रामीण जन जीवन के दर्शन होते है । देश में सरस मेले ही ग्रामीण उत्पादों के मूल और विश्वसनीय प्रतिनिधि है।
इसलिए ग्रामीण उत्पादों के उत्पादन व विपणन का एक शानदार इतिहास रहा है जिसे संजो कर रखने की ज़रूरत है ।