सुप्रीम कोर्ट से की चुनावी भाषण के दावों और वादों को समीक्षा दायरे से बाहर रखने की अपील
नई दिल्ली:-मंगलवार को चुनावों से पहले फ्री बी यानी मुफ्त उपहार का वादा करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान आम आदमी पार्टी ने चुनावी भाषण और वादों को समीक्षा के दायरे से बाहर रखने की मांग करते हुए कहा कि चुनाव से पहले किए गए वादे, दावे और भाषण बोलने की आजादी के तहत आते हैं। उन पर रोक कैसे लगाई जा सकती है? अनिर्वाचित उम्मीदवारों द्वारा दिए गए चुनावी भाषण भविष्य की सरकार की बजटीय योजनाओं के बारे में आधिकारिक बयान नहीं हैं और न ही हो सकते हैं। वास्तव में वे नागरिक कल्याण के विभिन्न मुद्दों पर किसी पार्टी या उम्मीदवार के वैचारिक बयान मात्र हैं, जो तब नागरिकों को सचेत करने के लिए हैं ताकि वो मतदान में फैसला कर सके कि किसे वोट देना है। एक बार निर्वाचित सरकार बनती है तो ये उसका काम है कि वह चुनाव के दौरान प्रस्तावित विभिन्न योजनाओं या जो वादे किए गए उनको संशोधित करने, स्वीकार करें, अस्वीकार करें या बदल दें।
लिहाजा, विशेषज्ञ समिति को चुनाव प्रचार के दौरान किए गए वादों पर विचार करने से अलग रखा जाए। सरकार बनने के बाद की नीति पर ही विशेषज्ञ विचार करें, क्योंकि सरकार ही किसी नीति, वायदे और परियोजना को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। इस मामले में बुधवार को दोबारा सुनवाई होनी है।