ये है शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि
नई दिल्ली:- हल षष्ठी या हल छठ भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से एक या दो दिन पूर्व मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बलराम जयंती के नाम से जानते हैं। उत्तर भारत में इसे हल षष्ठी, ललही छठ या हल छठ कहते हैं और गुजरात में राधन छठ कहा जाता है। राधन छठ में संतान की रक्षा के लिए शीतला माता की पूजा करते हैं। बृज क्षेत्र में इसे बलदेव छठ कहते हैं। सनातन परंपरा में हल षष्ठी व्रत संतान की लंबी आयु और उसके सुख सौभाग्य की कामना के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को विधि विधान से करने पर संतान से जुड़ी बड़ी से बड़ी बलाएं दूर हो जाती हैं। संतान के सुख को बढ़ाने वाला हलषष्ठी व्रत इस साल 17 अगस्त 2022, बुधवार को मनाया जाएगा।
इस बार बन रहा है रवि योग:
17 अगस्त को हल षष्ठी के दिन रवि योग प्रात:काल से ही प्रारंभ हो जा रहा है। सुबह में करीब दो घंटे और रात में करीब 10 बजे से अगले दिन सूर्योदय तक है। रवि योग का प्रारंभ सुबह 05 बजकर 51 मिनट से होकर सुबह 07 बजकर 37 मिनट तक है। फिर रात में रवि योग 09 बजकर 57 मिनट से अगले दिन सुबह 05 बजकर 52 मिनट तक है। रवि योग में सूर्य देव की कृपा होती है। यह योग अमंगल को दूर करके शुभ और सफलता प्रदान करता है। रवि योग का समय पूजा पाठ के लिए उत्तम है।
हल षष्ठी व्रत की पूजा विधि:
व्रत वाले दिन महिलाएं सबसे पहले पवित्र मिट्टी की मदद से एक बेदी बनाकर उसमें पलाश, गूलर आदि की टहनियों और कुश को मजबूती से लगाती हैं। इसके बाद विधि विधान से पूजा करते हुए बगैर जुते हुए खाद्य पदार्थ को अर्पित करती हैं। इस व्रत में महुआ, फसही का चावल और भैंस का दूध और उससे बनी चीजों का प्रयोग किया जाता है और महिलाएं इन्हीं के माध्यम से इस व्रत का पारण करती हैं।
व्रत के जरूरी नियम:
संतान के सुख और लंबी आयु के लिए रखे जाने वाले इस व्रत को रखते समय न तो कोई अन्न खाया जाता है और न ही हल से जुता हुआ कोई अनाज या सब्जी आदि का प्रयोग किया जाता है। ऐसे में इस पावन व्रत में तलाब में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थ अथवा बगैर जोते गए पैदा होने वाली चीजों का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार हलषष्ठी व्रत में विशेष रूप से भैंस के दूध और उससे बनी चीजों का ही प्रयोग होता है।