kainchi Dham : कहानी नीब करोरी बाबा,कैंची धाम की

:- नीब करोरी बाबा पे थी हनुमान जी की कृपा

:- स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरबर्ग, जूलिया रॉबर्ट भी आ चूकिं हैं नीम करोली बाबा के आश्रम

:- सन 1962 में की कैंची धाम की स्थापना

हमारे भारत वर्ष में ऐसे भी कई महात्मा हुए जिनकी लोकप्रियता दूर-दूर देखी एवं सुनी गयी, इस कलयुग में आज भी ऐसे महात्मा हैं जिनपे मानों ऐसा लगता है जैसे उनपे साक्षात् भगवान ही विराजते हों। अपने दैनिक जीवन से परेशान कई लोग अपने एवं अपने परिवार की समस्या को लेकर महात्मा या धार्मिक बाबा के समक्ष हाजिर होते हैं, और आश्चर्य की बात है की समय के साथ ऐसे लोगो के जीवन से उनकी परेशानी दूर भी हुए है।

आज 21वीं सदी में भी ऐसे बाबा की कहानी सुनकर आश्चर्य होता है मगर यह सत प्रतिशत सत्य है जैसे मानों साक्षात् भगवान के रूप में ही धरती पे उनका जन्म हुआ हो। दोस्तों आज हम जिस बाबा के चमत्कार की कहानी बताने जा रहे है वो भारत में और विश्व भर में नीम करोली बाबा/ बाबा नीब करोरी/ कैंची धाम बाबा के नाम से मशहूर हैं।

शायद आपको विश्वास न हो लेकिन ये सच है नीब करोरी बाबा ने जिसको भी आशीर्वाद दिया वो अपने जीवन में कामयाब हुआ और इसी वजह से जब बाबा के चमत्कार के चर्चे विदेशों तक हुआ तो इनके आश्रम में फेसबुक के CEO मार्क जुकरबर्ग एवं Apple के मालिक स्टीव जॉब्स भी बाबा के दर्शन करने उनके आश्रम आये और आप सभी जानते हैं की फेसबुक और Apple आज दुनिया की सबसे कामयाब कंपनी में से एक हैं, इसके साथ ही हॉलीवुड की मशहूर अभनेत्री जूलिया रोबर्ट भी बाबा के आश्रम आकर उनका आशीर्वाद लिया और बाद में उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन करके हिन्दू धर्म को मानने लगी।

नीब करोरी बाबा का जीवन परिचय

नीब करोरी बाबा (महाराज जी) का जन्म सन 1900 ई0 के लगभग फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर ग्राम में हुआ था। इनका वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। इनके पिता का नाम श्री दुर्गाप्रसाद शर्मा था और माता का नाम कौशल्या देवी शर्मा था । इनकी प्रारंभिक शिक्षा किरहीनं ग्राम में हुई। 11 वर्ष की अल्पायु में ही इनका का विवाह एक सम्पन्न ब्राम्हण परिवार की राम बेटी कन्या से हो गया था। लेकिन विवाह के कुछ समय बाद 13 वर्ष की आयु में ही इन्होंने घर छोड़ दिया। घर छोड़ने के बाद Neem Karoli baba गुजरात चले गए। वहां पहले एक वैष्णव मठ में दीक्षा लेकर साधना की। उसके बाद अन्य कई स्थानों पर साधना की। 17 वर्ष की आयु में ही इन्हें ईश्वर के दर्शन और ज्ञान प्राप्त हो गया था। लगभग 9 वर्षों तक गुजरात में साधना करने के बाद महाराज जी भ्रमण पर निकले और वापस फिरोजाबाद के नीब करोरी नामक गाँव में रुके। यहीं जमीन में गुफा बनाकर पुनः साधनारत हुए।

लक्ष्मी नारायण शर्मा बचपन से ही बहुत ही अद्भुत और दयालु किस्म के बालक थे। लक्ष्मी नारायण शर्मा बचपन से अपने माता पिता के बात को माना करते थे। चूकिं लक्ष्मी नारायण शर्मा का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था इस वजह से इन्हे बचपन से ही भगवान की पूजा करना उनकी आराधना करना बेहद पसंद था। समय के साथ लक्ष्मी नारायण शर्मा का भगवान के भक्ति के प्रति झुकाव ज्यादा हो गया और इन्हे देख कर ऐसे महसूस होता था जैसे मानों की भगवान के ही बचपन का ही कोई रूप हों इनमे। जैसे जैसे लक्ष्मी शर्मा बड़े होते गए इनका हनुमान जी के प्रति विशेष भक्ति भाव जागा और तब से मानों लक्ष्मी नारायण शर्मा पे हनुमान जी बड़ी कृपा हुई।

किसी परिचित व्यक्ति के द्वारा बाबा के पिता को इनके निवास स्थान का पता चला तो उन्होंने वहां पहुचकर बाबा को गृहस्थ आश्रम का पालन करने की आज्ञा दी। वे चुपचाप पिता की आज्ञा मानकर पुनः गृहस्थ आश्रम में प्रविष्ट हुए। इस प्रकार बाबा नीब करोरी की कहानी किसी चमत्कार (miracle) से कम नहीं है।

पिता के आग्रह पर नीब करोरी बाबा का ग्रस्त आश्रम में पुनः प्रवेश

किसी परिचित व्यक्ति के द्वारा बाबा के पिता को इनके निवास स्थान का पता चला तो उन्होंने वहां पहुचकर बाबा को गृहस्थ आश्रम का पालन करने की आज्ञा दी। वे चुपचाप पिता की आज्ञा मानकर पुनः गृहस्थ आश्रम में प्रविष्ट हुए। गृहस्थ आश्रम में baba neem karoli को दो पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। जिनके नाम क्रमशः अनेग सिंह शर्मा, धर्म नारायण शर्मा और बेटी गिरजा हैं। गृहस्थ आश्रम के दौरान बाबा सामाजिक और धार्मिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे।

लेकिन मन से सन्यासी नीम करोली बाबा का मन ज्यादा दिन गृहस्थ आश्रम में नहीं लगा। सन 1958 के लगभग महाराज जी ने पुनः घर त्याग दिया। और बहुत से स्थानों का भ्रमण करते हुए कैंची ग्राम पहुंचे।

कैंची धाम की स्थापना

सन 1962 में बाबा भ्रमण करते हुए नैनीताल से 20 किलोमीटर दूर पंतनगर में स्थित कैंची नामक ग्राम में पहुंचे। यहां सड़क पर दो कैंची की तरह तीखे मोड़ होने के कारण इसका नाम कैंची पड़ा। यह स्थान सुरम्य पहाड़ी वादियों और देवदार के विशाल और घने वृक्षों के बीच में स्थित है। यह स्थान महाराज जी को इतना पसंद आया कि उन्होंने यहां आश्रम स्थापना का संकल्प कर लिया। 15 जून सन 1964 को यहां एक भव्य आश्रम (neem karoli baba nainital) की स्थापना हुई। तब से प्रतिवर्ष यह 15 जून को स्थापना दिवस मनाया जाता है। जिसमें एक भव्य मेले और भंडारे का आयोजन बाबा के समय से अनवरत चल रहा है। इस दिन यहां अपार भीड़ होती है। यहां देवी देवताओं के पांच विशाल मंदिर हैं। जिनके एक हनुमान जी का भव्य मंदिर भी है। आज भी मान्यता है कि यहां आने वाला कोई भी भक्त कभी खाली हाथ नहीं जाता।

नीब करोरी बाबा ने कब और कैसे किया देह त्याग

नीब करोरी बाबा (महाराज जी) ने अपने देह त्याग के संकेत पहले ही दे दिए थे। वे एक कॉपी में प्रतिदिन राम नाम लिखते थे। मृत्यु के कुछ दिन पूर्व उन्होंने वह कॉपी आश्रम की प्रमुख श्रीमाँ को दे दी और कहा अब इसमें तुम राम नाम लिखना।

9 सितंबर सन 1973 को baba neem karoli कैंची धाम से आगरा के लिए निकले। रास्ते में उन्होंने अपना प्रिय थर्मस ट्रेन से बाहर फेंक दिया। गंगाजली रिक्शेवाले को यह कहकर दे दी कि किसी चीज का मोह नहीं करना चाहिए।

10 सितंबर 1973 को मथुरा स्टेशन पर पंहुचते ही महाराज जी बेहोश हो गए। उन्हें तुरंत रामकृष्ण मिशन अस्पताल ले जाया गया। वही उन्होंने 10 सितंबर 1973 अनन्त चतुर्दशी की रात्रि में इस नश्वर शरीर को त्याग दिया।

बाबा लक्ष्मी नारायण का नाम नीब करोरी कैसे पड़ा

जब बाबा लक्ष्मी नारायण बबनिया से फरुखाबाद के लिए ट्रेन से रवाना हुए तो बाबा फर्स्ट क्लास डब्बे में बैठ कर यात्रा कर रहे थे। यात्रा के दौरान टीटीई ने बाबा से यात्रा टिकट माँगा और बाबा के भेष भूषा को देख कर उन्हें बहुत भला बुरा कहा और उसके बाद नजदीकी रेलवे स्टेशन नीब करोरी में उन्हें ट्रेन से उतार दिया। बाबा को ट्रेन से उतारने के बाद जब गार्ड और ट्रेन ड्राइवर ने ट्रेन चलाने की कोसिस की लेकिन ट्रेन वहाँ से नहीं हिली। काफी संख्या में वहाँ लोग इकठा हो गए, फिर लोगो ने टीटीई को सलाह दी की वो बाबा से माफ़ी मांगे, जब टीटीई ने बाबा से माफ़ी मांगी और बाबा को इज्जत से ट्रेन में बिठाया तब जेक ट्रेन वहाँ से रवाना हो सकी।उसके बाद वहाँ के लोगों ने बाबा से आग्रह की वो गंगा मैया के दर्शन के बाद नीब करोरी में ही रहें, इस वजह से बाबा का नीब करोरी में भी एक मंदिर/ आश्रम है। और फिर लक्ष्मी नारायण शर्मा बाद में नीब करोरी बाबा के नाम से मशहूर हुए।

जब बाबा की कृपा से कुए का खारा पानी हुआ मीठा

नीब करोरी मंदिर परिसर में एक कुआँ है जिसको राम सेवक के पिता ने बनवाया था, कहानी कुछ इस प्रकार है की रामसेवक के पिता की कोई संतान नहीं थी, एक दिन बाबा ने एक सेव रामसेवक को देकर बोले की इसे अपनी पत्नी को खिला देना, पुत्र की प्राप्ति हो जाएगी।

कुछ महीनों के बाद उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है वो महाराज से खुश होकर कहते हैं की महाराज मैं मंदिर परिसर में एक कुआँ बनवा देता हूँ जिसे लोगों को सुविधा जाएगी। लेकिन कुएं का पानी खारा निकल जाता है राम प्रसाद के पिता महाराज के पास जाते हैं और कहते हैं महाराज मैंआपसे क्षमा चाहता हूँ, कुएं का पानी तो खारा निकल गया, महाराज कहते हैं इस कुँए में चीनी की बोरियां डलवा दो, जिसके बाद कुँए का पानी अमृत की तरह मीठा हो गया।