वैज्ञानिक की हैवानियत- 40 कुत्तों से दुष्कर्म कर उतारा मौत के घाट, हो सकती है 249 साल की सजा

लंदन।
उसे कुत्तों से दुष्कर्म करने का अजीब शौक था। यही नहीं दुष्कर्म की वीडियो बनाता था और फिर बेरहमी से कुत्तों को मार डालता था। कई वीडियो सोशल मीडिया पर भी डाले। उसकी इस सनक का शिकार एक या दो कुत्ते नहीं, पूरे 40 कुत्ते हुए। जिनमे 39 की मौत हो गई। हैवानियत को भी शर्मसार कर देने वाली ये खबर किसी अनपढ़ या पागल व्यक्ति की नहीं ,बल्कि एक पढ़े लिखे संभ्रांत वैज्ञानिक की है।
हाल ही में इस मामले में फिर सुनवाई हुई। अदालत दोषी को सजा देने ही वाली थी कि उसके वकील ने एक नई रिपोर्ट पेश कर दी, जिसकी वजह से एक बार फिर सुनवाई टल गई। अब इस मामले की सुनवाई अगस्त में होगी।
मगरमच्छ विशेषज्ञ है सनकी:
इसका नाम एडम है । जो पेशे से जूलॉजिस्ट है। खासकर मगरमच्छ विशेषज्ञ है। पूर्व में एडम ने बीबीसी और नेशनल ज्योग्राफिक के साथ भी काम किया है। काम कर चुका एडम ब्रिटन एक प्रमुख प्राणीविज्ञानी है। उसने पिछली साल ऑस्ट्रेलिया की एक अदालत में अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। उसने बताया था कि दर्जनों कुत्तों को तब तक प्रताड़ित किया, जब तक वे मर नहीं गए। उसने बताया था कि यह सब कैमरे में भी कैद किया था। इतना ही नहीं, ब्रिटन ने 60 आरोपों के बीच बाल शोषण सामग्री को ऑनलाइन एक्सेस करने की बात भी कबूल की थी। बता दें, एडम पर दुष्कर्म, यातना और दर्जनों कुत्तों की मौत का आरोप लगाया गया है। उसे 249 साल की जेल हो सकती है।

घर मे था टॉर्चर रूम:
बताया जा रहा है कि एडम ने इस क्रूरता के लिए घर में बाकायदा एक टॉर्चर रूम बना रखा था। जिसमें वीडियो रिकॉर्डिंग की पूरी व्यवस्था थी। यहीं एडम कुत्तों को लाकर उनके साथ घिनौनी करतूतें करता था और वीडियो बनाता था। एडम ने बताया कि वो ऐसे कुत्तों को शिकार बनाता था, जिन्हें उनके मालिक छोड़ दिया करते थे।

वकील ने बताई बीमारी:
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान एडम के वकील ने एक नई रिपोर्ट पेश करते हुए वकील ने न्यायाधीश से इस रिपोर्ट पर विचार करने का अनुरोध किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि जेल में मनोवैज्ञानिक द्वारा करीब 30 घंटे तक उनका इलाज किया गया। इसकी रिपोर्ट में उनकी मौजूदा मानसिक स्थिति के बारे में बात की गई है।

अपने मुवक्किल की सजा में कमी करने का अनुरोध करते हुए वकील ने कहा, ‘यह एक इंसान है जो बचपन से ही इस बीमारी से पीड़ित है… यह उसकी गलती नहीं है। यह महत्वपूर्ण है न्यायाधीश, यह विशेष बीमारी समाजों में एक अजीब सी स्थिती पैदा कर देती है। समाज के लोग ऐसे लोगों को अपने बीच में जगह नहीं दे पाते हैं। मुझे उम्मीद है कि अदालत यह स्वीकार कर सकती है कि वयस्क होने तक इस बीमारी के साथ जीना और इसे संभालना बहुत मुश्किल रहा होगा।’