✍🏻 योगेश राणा
Legal/SC : देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के एक आदेश को रद्द करते हुए चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर विस्तृत व्याख्या दी है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बच्चों के साथ यौन अपराध से संबंधित वीडियो को सिर्फ डाउनलोड करना, देखना या उसे अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में रखना भी एक गंभीर अपराध माना जाएगा। भले ही वह वीडियो किसी अन्य व्यक्ति के साथ साझा न किया गया हो, फिर भी ऐसा करना अपराध की श्रेणी में आएगा।
पॉक्सो एक्ट और IT एक्ट की धाराओं के तहत अपराध
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों के यौन शोषण से संबंधित वीडियो को अपने पास रखना, पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 15(1) के तहत दंडनीय अपराध है। कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि केवल वीडियो रखने से आरोपी पर पॉक्सो या IT एक्ट की धारा 67B के तहत मामला दर्ज नहीं हो सकता। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को फिर से सत्र न्यायालय में सुनवाई के लिए भेज दिया।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द पर निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी अदालतों को निर्देश दिया है कि वे “चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी” शब्द का उपयोग न करें। इसके बजाय अदालतों को इस प्रकार के मामलों में “Child Sexual Exploitative and Abuse Material” का इस्तेमाल करना चाहिए। अदालत का मानना है कि यह शब्दावली अपराध की गंभीरता को अधिक सटीक रूप से परिभाषित करती है।
अध्यादेश लाने का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सुझाव दिया कि पॉक्सो कानून के तहत अपराध की परिभाषा को और व्यापक बनाने के लिए संसद को “चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी” शब्द को बदलकर “Child Sexual Exploitative and Abuse Material” करना चाहिए। इसके लिए अदालत ने एक अध्यादेश लाने का प्रस्ताव भी रखा, जिससे बच्चों के यौन शोषण से जुड़े अपराधों पर और कठोरता से निपटा जा सके।