“राजनीति नहीं अपितु राजधर्म की आवश्यकता” पर गोष्ठी सम्पन्न
गाजियाबाद:- केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में ” राजनीति नहीं अपितु राजधर्म की आवश्यकता” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।यह कोरोना काल मे 437 वां वेबिनार था।
वैदिक विद्वान आचार्य वीरेन्द्र विक्रम ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती ने राजधर्म का प्रयोग करके राजनीति को सकारात्मक दिशा दी है।उन्होंने कहा कि राजनीति एक निरपेक्ष शब्द है जबकि राजधर्म सापेक्ष शब्द है जो जन कल्याण की भावना को समेटे है।धर्म राज्य के हितों व अधिकारों की रक्षा का कार्य करता है जो सत्य,दया व लोकोपकार से प्रेरित होता है।महर्षि दयानंद के राजधर्म से अभिप्राय राजनीति के उन महान सिद्धान्तों से जिन्हें वर्तमान में विधि का शासन कह सकते हैं। स्वामी जी ने राज्य संचालन के लिए तीन सभाओं की राजार्या सभा,विद्यार्य सभा व धर्मार्य सभा की परिकल्पना 150 वर्ष पूर्व सत्यार्थ प्रकाश में लिख दी थी, इसी तरह उन्होंने 18 वर्ष की बात भी 150 वर्ष पूर्व लिख दी थी व आर्य समाज के निर्वाचन का आधार भी प्रजातांत्रिक रूप से 18 वर्ष वालो को प्रदान किया। धर्म का पालन कर्म कांड न होकर उन्होंने कर्त्तव्य पालन से जोड़ा।कर्तव्य पालन की दृढ़ इच्छाशक्ति व संकल्प ही प्रजातंत्र का आधार है महर्षि दयानंद ब्रह्मर्षि ही नहीं अपितु राजऋषि भी थे उनके 150 वर्ष पूर्व लिखे विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि राजनीति अछूत नहीं है यदि उसका आधार राजधर्म हो और उसका लक्ष्य जनसेवा व जनकल्याण हो।
मुख्य अतिथि आर्य नेता हरीश भारद्वाज व अध्यक्ष अशोक आर्य (प्रधान, आर्य केन्द्रीय सभा गुरुग्राम) ने भी राजनीति की शुचिता पर बल दिया।
राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि अच्छे लोगों को राजनीति में आना चाहिए तभी राजनीति का शुद्धिकरण होगा।
गायक रविन्द्र गुप्ता,प्रवीना ठक्कर,कमलेश चांदना,कुसुम भण्डारी,ईश्वर देवी,नरेशप्रसाद आर्य,रचना वर्मा,सुदर्शन चौधरी, शोभा बत्रा,जनक अरोड़ा, संतोष प्रयागराज आदि के मधुर भजन हुए।